Sunday, November 27, 2011


मुझे किसी की सांसें छू गयीं
मैं इंसान से फ़रिश्ता हो गया
तो इंसान से फ़रिश्ते का सफ़र एक सांस की छुअन ने करवा दिया! ओशो कहते है उस तक पहुँचने के लिए कुछ तो उस जैसा चाहिए अपने आप मैं! कुछ भी उस के जैसा एक सीढ़ी है जो उस तक पहुंचा देगी! यह ही एक कारण है कि हर एक ध्यान की विधि से पहले काया और मन की स्वच्छता पर जोर दिया जाता है! क्यूंकि जो स्वच्छ है वोही सुन्दर है और जो सुन्दर है वोही शिव है!यह इस युग कि त्रासदी है कि हम ध्यान को दवा और गुरुओं को एक अनदेखे अंगरक्षक की तरह समझते हैं जो हमारे हर कर्म मैं हमारे लिए कुछ भी करेंगे!और हम कहते हैं मुझे कुछ नहीं होगा मेरे गुरु जी मेरे साथ हैं! अब हम ने स्वार्थ मैं उन के सब काम बंद कर दिए और अपने साथ ले चले!
इंसान की पूरी ज़िन्दगी एक झूठ को सच बनाने में लगती है और कुछ लोग एक बार दोखा खाते हैं और कुछ बार बार! बुले शाह की हडियाँ कब्र से निकल कर रक्स करती हैं -शायद यार मन जाये! कबीर की मटकी फूटती है तो वह कहता है भला हुआ, पनिया बरन से छूट तो गए! क्या बुरा है तू किसी और का हो गया मैं छूट तो गया तुम को अपनाने से!अंत एक उत्सव है और अनंत इस उत्सव का जीवन भर और हर दिन आप के साथ रहना!
हर बार कुछ घटित होता है तो मन सुजाव देता है! मन के पास कितनी कहानियाँ हैं! अनगिनत कहानियाँ और इन्हें सुना सुना मन कहता है तुम तो नहीं उस को समझना चाहिए! मन आप को सोंचने ही नहीं देता! तर्क असंभव , बात की सोंच असंभव , मन कहता है क्या किया तुम ने? यह तो होना ही चाहिए ! किस बात से डरते हो , यह तुम्हारा हक है क्यूंकि यह तुम्हारा जीवन है! और जब कोई और वोहीं हक मांगता है तो असंभव ! क्यूंकि तब आप को लगता है की परिपक्वता सिर्फ आप मैं ही है और आप कुछ भी कर सकते हैं!
हज़रत सुलतान बाहु एक बहुत बड़े सूफी शायर और फकीर हुए हैं , कहते हैं
अलिफ़ अल्लाह चम्बे दी बूटी , मुर्शिद मन विच लाई हूँ
नफी अस्बात दा पानी मिलिया , हर रगे हर्जाए हूँ .
अन्दर बूटी मुश्क मचाया , जान फुल्लां ते आयी हूँ
जीवे मुर्शिद कामिल बहु , जिन एह बूटी लई हूँ
मेरे मुर्शिद ने मेरे मन मैं अल्लाह के नाम की खुशबू वाली भेल लगाई है! मेरे ना मानने से ले कर मेरे खुदा से मिलने तक के सफ़र ने इस भेल को सींचा है! जब अलौकिक सचाई मेरे सामने आई मेरा मन खुशबू से भर गया और अल्लाह के नाम से प्रफुलित हुआ! ऐ मेरे मुर्शिद तुम ने यह खूबसूरत खुशबू वाली भेल मेरे मन मैं लगाई ,अल्लाह करे तू हमेशा मेरे लिए बना रहे!
भुले शाह कहते हैं:
न मैं अन्दर वेद किताबां
न विच भंगां ना शराबां
न विच रिन्दान मस्त खराबां
न विच जागन ना विच सौन
ना मैं वेद की बड़ी बड़ी किताबूँ मैं हूँ,ना अफीम या शराब के नशे मैं हूँ! न किसी नशेडी के मस्त अहंकार मैं हूँ , ना नींद ने मुझे घेरा है और ना ही मैं जाग रहा हूँ . मैं की जाना मैं कौन?
सरलता का नाम , सुन्दरता का नाम, सत्य का नाम अल्लाह है , प्रभु है या भगवान् है! अगर यह सब नहीं जानते तो लाख कोशिश करो अल्लाह को प्रभु को भगवान् को और सब से बड़ी बात अपने आप को कभी भी जान नहीं पाओगे!
मेरी काया के दरीचूं पर
पांच पीरून ने दस्तक दी
सारा अम्बर गुनगुना उठा
और मेरा वजूद दरगाह हो गया!

Thursday, November 24, 2011

विस्थापन


विस्थापन
मेरी माँ कहती है
वहाँ चिता की आग ठंडी होगी
मेरी पत्नी कहती है
सेब खाऊंगी तो अपने आँगन के
मेरे बेटे को याद ही नहीं
उस का स्कूल कैसा था
मेरे कुछ दोस्त
मार डाले गए
कुछ अनजानी बीढ़ मैं
दौड़ते दौड़ते मर गए
और कुछ हर दिन
एक नयी मौत मर रहे हैं
मेरी माँ दीवारूं से बातें करती है
मेरी पत्नी रुंधे गले से "बोम्बरो " गाती है
मेरे बेटे का सब कुछ लुट चुका है
एक दिन हम सब ख़तम हो जायेंगे
और हमारी कागज़ पर लिखी कहानी
रद्दी के भाव बिक जाएगी
हाँ मेरे दोस्त
सच कहा था तुम ने
मुझे क्या बुरा था मरना
अगर एक बार होता!

Tuesday, November 1, 2011


ज़िन्दगी किसी शामो - सुबह की मोहताज नहीं

तुम्हारे हसीन पाऊँ की दूल है वक़्त

झुक जाती हैं निगाहें झुक जाते हैं सर

हम बस एक ख्वाब देखते हैं

तुम्हारी आंखूं मे!

ख्वाब तुम्हारी आरज़ू का,

ख्वाब तुम्हारी सांस की खुशबू का

और वक़्त की देहलीज़ पर

अपूर्ण से पूर्ण हो जाते हैं

वक़्त तुम्हारे होंठूं की गर्मी में पिगलता है

हर सुबह और हर शाम

तुम्हारे नाम का सजदा करती है

एक परिंदे की पहली परवाज़ है ज़िन्दगी

जो मेरे होने से लेकर

तुम्हारे होने के एहसास तक

तुम्हे ढूंढते ढूंढते मुझे

खुदा तक पहुंचा देती है!

सच है तुम्हारे हसीन पाऊँ की दूल है वक़्त