Monday, June 18, 2012

 
 
 
 
तू सुन
तू सुन ,
सुन ले मेरी बात
जब भी मुझे लगा है
तुम को छू लिया है मैंने
अक्सर अपने हाथ को ही
अपने हाथ में पा लिया है मैंने
तुम्हारी रग रग जब
मेरे वजूद के साथ जुड़ जाती है
कई रागों की
आरोही और अवरोही
जन्म लेती है
तू सुन मेरी बात
सुना है मुझे क्या कभी?
तुम्हारी धड़कन का सुर हूँ मैं
सुन तो तू
मेरे स्पर्श की ज्वाला में
खुद को देखा है कभी
सोने जैसा धमक उठता है
तुम्हारा अंग अंग,
सांसें मोगरे का फूल हो जाती हैं
तुम हो..............
बस यह एहसास
हर तरफ फ़ैल जाता है
सब कुछ तुम्हारा हो जाता है!
और क्या कहूं तुम से
फिर भी तू सुन
प्यार करता हूँ तुम से
बस इतनी सी है बात!
(This poem is inspired by a Punjabi poem written by VandanaKL Dawar ) 

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