Wednesday, September 5, 2012

 
 
 
 
 
रात के पिछले पहर अक्सर
तुम्हारी आवाज़ खिड़की से
रेंगती हुई चली आती है
कब से कह रहा हूँ
मैं कानों से सांस लेता हूँ
देखो तो करवट भी ले रहा हूँ
और जिंदा भी हूँ अब तक
यह अलग बात है
एक अजीब बीमारी है
कानों से सांस लेना!
शायद तुम्हारे मेरे बीच
एक खाई खोदनी पड़े
या कुछ दीवारें
खडी करनी पड़ें
या फिर मैं ही कह दूं सब से
जाओ मेरा रब बख्श दे तुम को
अच्छा है इसी जन्म में
हिसाब बराबर हुआ अपना
कहा था ना मैंने, खरी खोटी सुनाना
मैं भी जानता हूँ !
~प्राणेश नागरी -०६.०९.२०१२.

8 comments:

  1. चार सुनी दो कहीं
    हक़ीकत तो रही वही
    कुछ कह आए बस यह मनोशांति रही.

    Peace,
    Desi Girl

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  2. एक सोपान और तय हुआ ज़िन्दगी में ...क्षमा की ओर ..
    आसान तो नहीं दिखता....यकीनन नामुमकिन भी नहीं

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    1. Vastav main jab bhi kisi ko mauf karte hain sach main apne aap ka hi bala karte hain.

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  3. मैं कानों से सांस लेता हूँ

    यह अलग बात है
    एक अजीब बीमारी है
    कानों से सांस लेना!.....

    अजीब है ..अद्भुत है ..

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    1. Aap to jaante hain , maine jo bi kiya ulta hi kiya, paagalon se aur kya milne waala hai.

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    2. "एक अजीब बीमारी है
      कानों से सांस लेना!".....

      मेरे लिए यह एक अद्भुत और अलग प्रयोग है .. जो बहुत नया है मेरे जैसे सीमित ज्ञान वाले पाठक के लिए ..
      अगर टिप्पणी ने आपको आहत किया है तो मैं क्षमा प्रार्थी हूँ

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    3. Vandana ji ki tippani aur aahat kare yeh ho hi nahi sakta. Is blog ka naam hi paagalpan hai, aur hum ko paagalpan ke siva kuchh aata bhi to nahi.
      Aap tippani likhiye aur chinta ke bageir likhiye. Aap kuchh bhi galat nahi likhenge yeh hum jaante hain.

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