Wednesday, September 19, 2012

रिश्तों का नमन

मैं उन रिश्तों का नमन करता हूँ
जो समय के साथ बदलते हैं,
चूँकि खुद के साथ मेरा रिश्ता
ना बदल पाया अब तक
अपने आप को नमन नहीं कर पाया मैं!
अलग- अलग दर्पणों के सामने
खुद को रखा , देखा , परखा
एक से एक नए वस्त्र से ढका तन को
गंगा नहाये,इत्र लगाये, खूब चन्दन मला
पर नहीं बदलना था ,बिलकुल नहीं बदला,
और इसीलिए आज तक अपने आप को
नमन नहीं कर पाया मैं !
मैं उन सभी उत्सुकताओं का नमन करता हूँ
जो कोलम्बस की तरह
मनुष्य को कुछ ना कुछ नया
ढूँढने पर विवश करती हैं,
और नित नए पड़ाव पर ले चलती हैं,
और एक हम हैं
माँ ने कहा था चन्दा मामा आयेंगे
खुले आसमान के नीचे
आज तक कटोरी लिए खड़े हैं,
और इसीलिए कोई नया आसमान
आज तक नहीं ढूँढ पाए अपने लिए !
बदलना शायद एक कला है
और इस भूमंच पर
मौसम कलाकारी करें तो करें,
धरती,आकाश,सूरज,वायू और जल भी कला दर्शायें
तो फिर हर पल बदलने वाला यह मानव
भला कहाँ जाए और किस का नमन करे?

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