मेरा नाम तुम आस पास
रख देना कहीं
उस तकिये के नीचे रख देना
जिस के लिहाफ पर
मेरे माथे के पसीने ने बेबसी की
कितनी दास्तानें लिखी हैं!
या उस दीवार के पास रख देना
जहां तुम मेरे जाने के बाद
मेरे साये को अक्सर टांग देती थी
मैं आज भी वहीँ कुछ उलटी सीधी
टंगी तस्वीरों के बीच खड़ा
अपने साये को नापने की
कोशिश कर रहा हूँ
मैं अब भी शायद कद से
बौना दिखता हूँ तम्हे!
या फिर मेरा नाम
किसी झुलसती दोपहरी में
गुलमोहर के फूलों के बीच रख देना
कुछ करवटें मैं भी बदलूं
कोई आग मेरे भी नसीब में हो
देखो चांदी का हो गया हूँ मैं!
मेरा नाम बस आस पास ही
रख देना तुम -जाने कब
सपनों को भिगोना पड़े तुम्हे
और तुम जानती हो
मैं पलकों की सरहदों पर
बहते दरिया रखता हूँ !
~प्राणेश नागरी -०४.०९.२०१२
सोच से बौना होने से कहीं बेहतर है क़द से बौना होना ....
ReplyDeleteजाने कब
सपनों को भिगोना पड़े तुम्हे
और तुम जानती हो
मैं पलकों की सरहदों पर
बहते दरिया रखता हूँ !
व्यक्तित्व की उदारता और विशालता की द्योतक हैं यह पंक्तियाँ
vandana ji thanx aap ne samay nikaal kar padha.
ReplyDelete