कुछ लोग आप से रोज़ मिलते हैं
और मिलते ही लगता है
जैसे आप से पूछ रहे हों
क्यूं अभी भी वैसे ही हो
नाकाम, अधूरे , बेकार, बेबस
थके हारे से आप कह देते हो
नहीं प्रयासरत रहा हूँ मैं
मैंने कोशिश की
कि सच्चाई का घला घोंटूं
पर क्या करुं ,
कुछ साजिशों में व्यस्त रहा मैं
कुछ बच्चों के चन्दा मामा रूठ गए थे
उन को मनवाना था,
कुछ बेटियाँ कोख में दम तोड़ गई थीं
उन का मर्सिया पढना था,
कुछ लोग प्रेम का पाठ पढ़ते पढ़ते
इज्ज़त की खातिर बलि चढ़ाये गए थे
बीच बाज़ार चीखना था उन के नाम पर,
कुछ सड़क पर फेंके गए रिश्ते दम तोड़ दिए थे
मुर्दा घर की राह दिखानी थी उन को,
किसी माँ का बीच बाज़ार वस्त्र हरण हुआ था
तीन गज़ कफ़न से ओढना था उस की देह को,
क्या करुं दोस्त प्रयास तो किया था बहुत
पर इन साजिशों में व्यस्त रहा मैं
इसीलिए सच का घला नहीं घोंट सका
इसीलिए दिखता हूँ तुम को
नाकाम , अधूरा, बेकार और बेबस!
~प्राणेश नागरी-२६.०४.२०१२
एक बहुत संतुलित तरीके में कही गयी बेहद गहरी बात ...यह आप ही कह सकते हैं ऐसे |
ReplyDeleteआप का आभार दीपक जी
Deleteस्नेह के लिए धन्यवाद
This is so touching Pranesh ji.kudos !
ReplyDeleteआप का बहुत आभारी हूँ, मैं बस कोशिश करता हूँ!
Deleteआप का मन सुन्दर है और आप हर चीज़ में सुन्दरता देख रहे हैं!
आप हमेशा बहुत सुन्दर लिखें और सुन्दर कल्पना करें, में ऐसी कामना करता हूँ!