Wednesday, May 9, 2012

एक बुलबुला पानी का

एक बुलबुला पानी का
एक बुलबुला था पानी का
बीच हथेली आ कर ठहर गया!
उगते सूरज ने किरणों से सींचा
सतरंगा हो अपनी ज़ात पर
रश्क करने लगा,
झिलमिल रंग- बिरंगा
कभी अंगूठी में, कभी नथनी पर
भरी मांग में और कभी गिरेबान पर
कहीं भी बैठने के स्वप्न देखता रहा,
पर सतरंगा जो रंग था उस का
सूरज की किरणों का उधार था!
समय ने करवट बदली
दोपहरी और तपती दोपहरी
वह एक पानी का बुलबुला
पल भर में मिट गया
मिटते मिटते एक दाग छोड़ गया
सब रंगों का हथेली के बीचों बीच,
क्यूं कर ना होता ऐसा
सतरंगा था वह बुलबुला
और सातों रंग थे उधार के!
पानी का वह बुलबुला
जाने क्यूं भूल गया
कितना भी रश्क करो अपनी ज़ात पर
फिर भी हर रंग उधार का
एक दाग ही तो होता है!
~प्राणेश नागरी-२८.०४.२०१२

1 comment:

  1. ...उगते सूरज ने किरणों से सींचा
    सतरंगा हो अपनी ज़ात पर
    रश्क करने लगा,...
    ...कितना भी रश्क करो अपनी ज़ात पर
    फिर भी हर रंग उधार का
    एक दाग ही तो होता है!

    लाजवाब.

    Peace,
    Desi Girl

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