Sunday, May 27, 2012

1,2,3,

1.
क्या हुआ था उस दिन                                   
सच बता दो
हर दिन
मिलती थी तुम
और बस
चली जाती थी
उस दिन क्या हुआ था
मिली और आज तक
गयी ही नहीं
बताओ ना क्या हुआ था
उस दिन ....................?




2.
क्यों  देख रहे हो
मेरे मिट्टी से सने हाथ
ऐसे भी देखता है क्या कोई
कुछ अपनी बात कहो
कुछ वादे करो
कुछ पल पास बैठ जाओ
कुछ तारीफों के पुल बांधो
कुछ चिकना चुपड़ा सुनाओ
तब तक मैं
कब्र खोद के रखता हूँ
तुम्हारे जाने के बाद
इस रिश्ते को दफ़न करना है
और फिर एक नया
सिलसिला शरू करना है
फिर से चिकना चुपड़ा सुनना है!
3.
ना करना वादे कोई
उम्मीदें ना बांधना
जो जा रहे हों
बस उन को जाने देना
रात को रात कहना
झूठी  सुबह का दिलासा ना देना
सीधे साधे  होते हैं लोग
फूल से प्यारे होते हैं लोग
ना छुपाना कांटे उन से
उन को, लगने वाली
खरोंच की याद दिलाना

******************

8 comments:

  1. कविता बहुत सुंदर है | भीतर तक छील गयी |ओअप यह भी सच है नागरी साहब ,अगर सब सच्ची बातें खोल कर परोस दी जाएँ तो टिकते भी नहीं रिश्ते | रोज़ नई कब्र खोदने से बेहतर होता है ....कुछ झूठ बोल पहले रिश्ते बचाए रखना |

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    1. Deepak ji aap ki baaton ki qadr karta hoon. Jaanta hoon sidhai yani seedha hona bewaqoofi ban jaatee hai, par aakhri waqt main kya apne chalan ko bhoolein.

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  2. तीन हिस्सों के जज़्बात में मनुहार , थोड़ी नाराजगी और उदास सी नाउम्मीदी के साथ एक बात तो स्पष्ट है -- रिश्तों की बेक़द्री अंतस को तोड़ने की हद तक आहत कर सकती है ....और फिर एक सवाल उठता है कि जटिलता या बेरुखी क्यों पैदा की जाती है उन्ही रिश्तों में , जो जीवन का संबल होते हैं ..... दीपक जी की टिप्पणी से पूरा इत्तेफाक रखते हुए ... या इसे एक सीख की तरह लेकर ..कहना होगा ..... सच का एक हिस्सा बचा लेना चाहिए अन्यथा वही कब्र खोद देता है .
    इस दौर में ऐसी संवेदनशील कविताएं कम लिखी जा रही हैं ... आपका लिखना बहुत बड़ी राहत है .

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    1. Maine upar bhi kaha hai ki bahut mushkil hai aakhri waqt main apne chalan ko boolna. Hum se jo bhi hota hai woh to hota hai, hum karne main ya ek effort lagane main vishwas nahi karte. Kyoonki jo hai woh hona hi chahiye chahe kitna hi katu kyoon na ho, par satya to satya hai.Hum bas anjaane main sharo karte hain, anjane main khatam ho jaata hai, kabhi kuchh bi talakh nahi hota hamare lafzon main. Kavi ka kaam bus ek witness ki tarha sach ko darshaana hai, agar us main effort aa jaata hai to woh kavita nahi poster ho jaata hai.Sach bolna hamaari majboori hai, kyoonki sach hi sambal hai.Jooth kab tak saath chalega. Satya aap ko bura bana sakta hai par ganda kabhi nahi. Thanx.

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  3. रिश्ते अनजाने में शुरू होते हैं और अनजाने में ख़त्म हो जाते हैं क्योंकि रिश्तों को बनाये रखने का प्रयास करना पड़ता है.
    प्रयास भी मन से और जतन लगा कर करना पड़ता है, मिलते कई हैं और ठहरते कम ही हैं. कभी उन्हें उनकी गरज रोक लेती है और कभी हमारी मुनहार.
    सभी रिश्ते एक मियाद के साथ आते हैं कुछ सच की आंच में तप कर निखर जाते हैं और कुछ राख़ हो रहते हैं और कुछ अध् झुलसे सिसक सिसक दम तोड़ते हैं या यूंही रेंगते रहते है, फिर कुछ ऐसे होते हैं जब चाहे जहाँ से उठा लो जैसे कुछ बदला ही न हो
    रिश्तों की उम्र उनमें डाली गयी प्रयास कि खाद पर निर्भर करता है कि वह कितना सच बर्दाश्त करते हैं.
    दूसरी कविता में जिन रिश्तों कि तरफ संकेत है उन में प्रयास कम औपचारिकता का लबादा ओढना ज्यादा जान पड़ता है. क्या औपचारिकता हमरी सामजिकता कि आवश्यकता है या हमारी सुरक्षा ढाल है इन रिश्तों के अतिक्रमण कि खिलाफ? क्या ऐसे रिश्तों का ख़त्म होना खलेगा? या उन रिश्तों के दम तोड़ने मात्र का इंतजार था ताकि दफ़न किये जा सकें और हमें मुक्त साँसे नसीब हों?
    तीसरी कविता के बारे में फिर कभी...
    Peace,
    Desi Girl

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    1. Aap har baar apne aap ko zaleel nahi dekh sakte, pyaar ki keemat ho saktee hai, par keemat agar izzat de ke chukaanee pade to nahi, aisa nahi hona chahiye.
      Har insaan aap ko samjhaane lage aap ka mazaak udhane lage yeh nahi hona chahiye.

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    2. सही कहा आपने, यह या वह नहीं हो सकता रिश्तों में चाहे वे कितने भी औपचारिक या अनौपचारिक क्यों न हों. अगर ऐसे चुनाव कर ने पड़ें तो बात बात पे आत्म सम्मान को ढेस पहुँचनी लाज़मी है.
      यह तो ऐसा हुआ जैसे अंडे के छिलकों पे चलना अब टूटे तब टूटे, ऐसे रिश्तों का टूट जाना ही भला. वयस्कों के तन में पांच बरस के बालकों जैसा व्यवहार अगर उनकी बात न मनो तो उत्पात करेंगे.

      "...क्या औपचारिकता हमरी सामजिकता कि आवश्यकता है या हमारी सुरक्षा ढाल है इन रिश्तों के अतिक्रमण कि खिलाफ?"
      इस वक्य में अतिक्रमण शब्द के साथ आक्रामकता का प्रयोग सही होता.

      मशवरे और सहलें देने वाले वे लोग ही होते हैं जिन्हें स्वयं कुछ न करना हो बस दूसरों के कंधे पे रख कर बन्दूक चलाना हो...
      Peace,
      Desi Girl

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