1.
मैं आज की क्या कहूं
आज सूरज
पश्चिम से निकला
आज उजाला
जुगनुओं के काँधे पर आया
आज मैंने
चाँद को तह लगायी
आज सितारे
तुम्हारे दुपट्टे में बाँध दिए
मैं आज की क्या कहूं
आज जाने
रात कहाँ खो गयी
आज बस
यूं ही सुबह हो गयी!
2.
कब से बैठा
उंगलियाँ गिन रहा हूँ
कुछ पल ही तो था
मैं तुम्हारे पास
सांसें भी नहीं गिन पाया
तुम को
ठीक से देख भी नहीं पाया
फिर यह उंगलियाँ क्या हुई
देख लेना शायद रह गयी
तुम्हारी अंगूठियों के बीच!
कल 15/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
आप का बहुत आभारी हूँ !
Deletebahut sundar kavitayen !! kuch nayi-nayi si tazgi se bhari lagi ye kavitayen...... ek tayshuda dharre se alag hatkar naye dhang ki kavita... bahut achchha laga padhkar.
ReplyDeletemanju
manukavya.wordpress.com
आप को मेरी कविताओं से एक ताज़गी का एहसास हुआ मुझे बहुत अच्छा लगा! और कविता का भी काम हो गया! आप ने समय निकाल कर पढ़ा आप का आभारी हूँ!
Delete--
Maine settings change kar di hain. Dhanyawaad.
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