मैं चाहता
हूँ
कोफी की
चुस्कियों में तुम घुल जाओ
और मेरे
सांवले होंठों
को छू कर
मेरी रग
रग में समा जाओ!
मैं तुम
को खिलखिलाती
चांदनी में
देखना चाहता
हूँ
मुझे यकीन
है मोगरे
के फूल
खिली चांदनी
में और महकते हैं!
तुम्हारी आवाज़
का मंत्र
तब से याद है मुझे
जब से
अन्तर का शंख नाद सुना है मैंने!
मैं सभी
आरतियों का अमृत चखना
चाहता हूँ
क्यूंकि इन
पात्रों में मुझे
तुम्हारे होंठों
का प्रतिभिम्ब
दिखता है!
कभी मेरी
हस्ती को पहचान भी लो
तुम्हारे बदन
की खुशबू
ओडे बैठा
हूँ
मैं ताज़े
शहद की तरह पहचानता
हूँ तुम्हें
हाँ यह
मिठास सचमुच
मेरी आँखों
से मेरे
भीतर आती है
मैं चाहता
हूँ तपती
दोपहरी को समुद्र किनारे
तुम्हे हरे
नारियल की मलाई जैसा
खा जाऊं!
~प्राणेश
नागरी-०३.०५.२०१२.
ek bahut anmol chaahat ki bayaani k liye kitni chaahto'n ka us'se pahle bahut manoram dhang se chale aana .. kavita ki khoobsurti kaa ek nayaa muqaam hai..
ReplyDeleteVandana Ji, baat itni si hai ki kya gurbat aap ke rooh ko chhoo gaye hai ya aap ke peit tak mehdood hai. Mansoor ne khuda ko challenge nahi kiya tha. Mansoor ne woh satya kaha tha jo tha, Anal haq.Par kaise keh saqta hai mansoor , ek banda, aur mansoor ko jalna pada tha, sadna pada tha.
ReplyDeleteYeh bi theek kyoonki yeh bhi satya hi tha.Par jis ki gurbat pet tak reh gayee woh khaana kha ke bach jayega aur jo rooh ka maamala tha woh betarteeb bikhar gaya, kho gaya.