कुछ ज़ेन कवितायें
अब थक गया हूँ बहुत
अब घर जाना चाहता हूँ
कोई मेरा पता बता दे मुझे !
परत दर परत बादल हट गए
हम चमकते चाँद को
चमचमाती रोटी समझे!
किसी की सांसें छू गयी
मैं इंसान से
फ़रिश्ता हो गया !
आवाजों का जंगल
क्या किया यह तुम ने
मीलों पड़ी खामोशी !
जी लूँगा हर इक मौसम
ओढ़ लूँगा हर सावन
तुम मत बदलना कभी !
मेरी देह के दरीचों पर
पांच पीरों ने दस्तक दी
मेरा वजूद दरगाह हो गया !
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