Wednesday, March 14, 2012

वह कहती है


वह कहती है

तुम को छूना है

मैं कहता हूँ

बस एक लम्हा हूँ मैं

बाकी सब तो मौसम है

भला मौसमों को भी

छू पाया है कोई?

वह अब

कुछ भी नहीं कहती,

फिर भी उस की

साँसों की छुअन

क्यूं बहलाती है मुझे

क्यूं वह गीतों में

मिलने आती है

क्यूं मुझे

सारी रात जगाती है?

वह कहती है

मुझे तुम को छूना है

देखना है तुम में

कहाँ रहती हूँ मैं

मैं कहता हूँ

अपने आप को टटोलो

मैं अब कहाँ रहता हूँ

अपने साथ!

~प्राणेश नागरी -१२.०३.२०१२

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