वह कहती है
तुम को छूना है
मैं कहता हूँ
बस एक लम्हा हूँ मैं
बाकी सब तो मौसम है
भला मौसमों को भी
छू पाया है कोई?
वह अब
कुछ भी नहीं कहती,
फिर भी उस की
साँसों की छुअन
क्यूं बहलाती है मुझे
क्यूं वह गीतों में
मिलने आती है
क्यूं मुझे
सारी रात जगाती है?
वह कहती है
मुझे तुम को छूना है
देखना है तुम में
कहाँ रहती हूँ मैं
मैं कहता हूँ
अपने आप को टटोलो
मैं अब कहाँ रहता हूँ
अपने साथ!
~प्राणेश नागरी -१२.०३.२०१२
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