मीठी थी बहुत
बात करती थी तो
शहद सा गोल देती थी ,
सरल भी थी
शब्दों में गुल मिल जाती थी
कविता सी थी ,
जहां तहां गूमती थी
यादों में सपना बन
आती थी,
आडम्बर सम्हालती थी
सब सह लेती थी
माँ जैसी लगती थी!
दूर सदूर देखती थी
सूर्य से संवाद
कर रही हो जैसे !
मैंने पूछा कौन हो तुम
चुड़ैल नाम है मेरा
पैदा होते ही
इसी नाम से
बुलाया था सब ने
वैसे कागज़ों में सुना है
इस घर की बेटी हूँ!
~प्राणेश नागरी
सरल, संवेदनशील उस पर अंत रहस्यमयी, बहुत खूब भाव.
ReplyDeletePeace,
Desi Girl