Wednesday, January 25, 2012
पच्चीस जनवरी
पच्चीस जनवरी
कल मैं जा रहा हूँ झंडा फहराने
मैं कल राष्ट्र गान भी गाऊंगा
भाषण भी दूंगा
फूलों की माला भी पहनूंगा
बापू, नेता जी, सब का
गुण गान करूंगा
मिठाई और जल पान करूंगा !
फिर रस्ते में जो भूखा नंगा मिले
उसे कोसता जाऊंगा
घर पहुँचते पहुँचते
अपने आप से कहूँगा
इस देश का कुछ नहीं हो सकता
सब कुछ बदलना पड़ेगा!
घर की चौखट पर
मेरे अपने मुझ से कहेंगे
इस साल कुछ नया कर लेते
कुछ नहीं तो कम से कम
अपने आप को बदल देते !
हर साल की तरह
मैं कमरे के अँधेरे मैं डूब जाऊंगा
घुट्नूं मैं चेहरा छुपा कर
साल गुजरने की प्रतीक्षा करूंगा
और फिर अगले साल
झंडा फ़हराने जाऊंगा !
~प्राणेश नागरी २४.०१.२०१२
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Very nice lines as usual! Something to think about on this Republic day!
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