Tuesday, February 7, 2012

विस्थापन


विस्थापन -3

मैं तुम्हारे मोहल्ले फिर आना चाहता हूँ

तुम्हारी माँ से फिर सुनना चाहता हूँ

नहीं ब्याहनी बेटी तुम्हारे साथ

और सर ऊंचा कर के कहना चाहता हूँ

ले जाऊंगा ब्याह के इसे एक दिन

पर तुम्हारा मोहल्ला अब है कहाँ

खाली खाली ज़मीन है

रोते बिलखते पत्थर हैं

कुछ टूटे फूटे हैरान से खड़े

मातम करते मकानों के अस्ति पिंजर हैं

किस से मिलने आऊँ वहां !

मैं अपने स्कूल के मेरिट बोर्ड पर

अपने नाम के ऊपर जमी

धूल झाड़ना चाहता हूँ

पर मेरा स्कूल मेरा कहाँ रहा

सुना है उस का नाम

अब हिन्दू हाई स्कूल रहा ही नहीं

चीख चीख के सुनाना चाहता हूँ

"लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी

ज़िन्दगी शम्मा की सूरत हो खुदाया मेरी....."

पर किसे सुनाऊँ, कैसे सुनाऊँ

मेरे माथे पर कुफ्र का फतवा चस्पां है!

वह चिड़िया का जोड़ा

जो हमारी खिड़की पर बैठा

चिपुर चिपुर करता हमें देखता रहता था

और जिसे देख अक्सर तुम शरमा जाती थी

सुना है वह अब किसी को देख चहकता नहीं

क्यूंकि वह अब खिड़की पर नहीं

किसी बन्दूक के साये में रहता है!

मेरे दिल मेरे मुसाफिर , हुआ फिर से हुक्म सादिर

कि वतन बदर.............

बहुत प्यारे हैं तुम्हारे अनुवाद

पर मेरी रीढ़ की हड्डी मैं

पिगलते सीसे जैसा उतर जाते हैं

घर की बहुत याद दिलाते हैं !

~प्राणेश नागरी -०८-०२-२०१२

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