मैं ख़ामोशी सुनाता हूँ!
मैं सागर का घन -गर्जन हूँ
मैं ख़ामोशी सुनाता हूँ!
एक लम्हे की उड़ान मेरी
सिकुड़ी हुई सर्द रातों मैं
सांसूं की सरगोशी हूँ
और मखमली बिस्तर की
सलवटों मैं पनाह पाता हूँ !
मैं मिथ्या और ब्रम के बीच
मोगरे का महकता फूल हूँ
काया के हवन कुण्ड की
लपटों की लीला के बीच
रटा - रटाया मंत्र हूँ
मैं एक अधूरी मुस्कान हूँ!
रस और गंध की लालिमा
पलकूं को भोजिल कर
सांसूं को जब भटकाती है
राग और वैराग्य की
चोखट पर खड़ा मैं
पुनर्वास के गीत गाता हूँ!
पलकूं की भीगी सरहद पर
यादों का मौन स्पंदन हूँ
सूखी जंगल की लकड़ी को
लहरूं के गीत सुनाता हूँ
मैं सागर का घन -गर्जन हूँ
मैं खामोशी सुनाता हूँ!
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