Saturday, December 17, 2011

साये


साये
साये का पीछा न करना
रौशनी के मोहताज होते हैं साये!
भरी दोपहरी मैं बौने हो जाते हैं
हर शामो- सुबह
लेट जाते हैं लम्बे हो कर
और मिटटी मैं मिला देते हैं साये!
साये साथ नहीं चलते कभी
या तो पीछे रह जाते हैं, या फिर
नई मंज़िलूँ की और दोड़ते हैं साये!
साये की कोई शक्ल नहीं होती
पत्थर से लिपटे तो पत्थर हैं साये
ज़मीन पर रेंगें तो मिटटी हैं
हर दरो दीवार पर लहराते हैं
और रात होते ही गुम हो जाते हैं साये !
साये का पीछा ना करना
अपने ना पराये होते हैं साये!

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