Thursday, December 15, 2011

शब्द कुछ नहीं बोलते


शब्द कुछ नहीं बोलते

शब्द कुछ नहीं बोलते
बस पड़े रहते हैं
बर्फ की सिल की तरह
हाँ तुम ने कुछ कहा होगा
क्यूंकि शब्द तुम्हारी आंखूं की तरह हैं
जितना देखो उतना ही
पलकूं की सरहदें भीग जाती हैं!
खामोशी एक शोर है
चेहरूँ के जंगल के बीच
मर्यादा को पहचानने का शोर
तुम्हारी सांसूं का शोर सुना होगा
खिड़की पर कौवा बोल रहा है
कोई ख़ामोशी पुकार उठेगी शायद!
चाँद को चुरा ही लूँगा मैं
अमावस की रात डल जाये तो
जुगनुओं के रेले का क्या
जब चाहो गठरी बांद ले चलूँ
शब्द बर्फ की सिल की तरह हैं
शब्द कुछ बोलते नहीं!

1 comment:

  1. कल 11/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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