Wednesday, February 22, 2012
कैसी हो तुम
कैसी हो तुम ........
सुख कभी देती नहीं
और दुःख ,कभी बांटती नहीं
बस एक संदेसा
भेज देती हो कभी कभी
इस सफ्ताह
वह आयेंगे मेरे पास रहने !
और फिर उस सफ्ताह
तुम मुझ से बात नहीं करती
उस पूरे सफ्ताह
मैं सोंचता रहता हूँ
कि तुम उस की आगोश मैं
वैसे ही रहती होगी
जैसे मेरे साथ रहती थी
और वह तुम्हारे अंग अंग
को वैसे ही निहारता होगा
जैसे मैं निहारता था
उस की उंगलियाँ
तुम्हारे बालों मैं
वैसे ही चलती होंगी
जैसे मेरी चलती थीं!
समझती हो ना तुम
मूर्तिमान बदलते हैं
मंच और मंचन नहीं बदलता
कथा और कथाकार नहीं बदलते!
ठीक वैसे ही जैसे
मेरा सत्य तुम्हारा सुख होता है
और तुम्हारा सत्य मेरा दुःख
पर सुख और दुःख की
परिभाषा नहीं बदलती
हाँ यह कारोबारी जगत है
मेरी ग़ुरबत और तुम्हारी दौलत
कभी भी इदर से उधर हो सकती है !
~प्राणेश नागरी -२२.०२.२०१२
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मेरी ग़ुरबत और तुम्हारी दौलत
ReplyDeleteकभी भी इदर से उधर हो सकती है !
दौलत और ग़ुरबत पाला नहीं बदलतीं बस हम दिल इस सोच से दिल बहलाए रखते हैं...
Peace,
Desi Girl