जब बहते दरिया ने
पहाड़ से कहा होगा
तुम्हारा सीना चीर के
निकल जाऊंगा एक दिन
तो पहाड़ हंसा होगा
और साथ में हँसे होंगे कुछ कंकर
जो पहले ही बिखर गए होंगे
पर अपने आप को अभी भी
पहाड़ ही समझ रहे होंगे!
किसी भी दायरे में झांक के देखो
जिसे सब कोसते होंगे
वह बीचों बीच खड़ा होगा
और जो उँगलियाँ उठाये खड़े होंगे
वह बस किनारे पर
अपनी पीठ थपथपाते होंगे!
पशुओं की चाल चलते चलते
इंसान बोलते कम और हिनहिनाते ज्यादा हैं
और हर पशु नाक की सीध में चलता है
क्यूंकि उस को हांकने वाले
उसे और किसी तरफ देखने ही नहीं देते
आँखों पर एक पट्टा बांध देते हैं!
पर समय रुकता नहीं
देखो बहते पानी ने
पहाड़ का सीना चीर दिया है
और दायरे के बीच खड़े
इंसान ने साबित किया है
कि धरती गोल है ,और हमें सिर्फ
बीच वाले को कोसना नहीं होगा,
परिधि को बिन्दु के पास पहुंचना होगा
और बिन्दु मैं विलीन हो कर एक दिन
एक नए आकार को जन्म देना होगा
सूर्य सा धमकना होगा!
~प्राणेश नागरी -२८.०५.२०१२