Friday, July 28, 2023

ADDICTION 

 

WHAT IS ADDICTION

 

When a person regardless of the consequences indulges in certain behavioral activities, the person is thought to be addicted. A person can be addicted to Drugs, Gambling, Alcohol, even smoking or internet and many other activities. Once started the frequency of the activity enhances. Whenever the person stops there is an unpleasant feeling. There can be food addiction, Exercise addiction, Addiction to pornography, computer, or cell phone addiction and many more. The person is not able to control his or her behavior and indulges repeatedly in the activity to an extent that he or she is harmed. 

Wikipedia defines addiction as under:

Addiction is generally a neuropsychological disorder defining pervasive and intense urge to engage in maladaptive behaviours providing immediate sensory rewards (e.g. consuming drugs, excessively gambling), despite their harmful consequences. Dependence is generally an addiction that can involve withdrawal issues.

Addiction is inability to stop using or doing something even if the consequences are harmful.

The American Society Addiction Medicine (ASAM) defines Addiction as a primary, chronic disease of brain reward, motivation, memory and related circuitry.

 

Research suggests that there is a relationship between genetics and addictive behaviour. Those born to addictive behaviour parents generally are more prone to have addictive behaviour. These are known as addictive personalities.

 

SYMPTOMS

 

Inability to have effective control.

Not able to concentrate on studies or work.

Undertaking risk in order to continue with the addictive behaviour.

Withdrawing from social activities.

Lying or making false commitments in order to meet behavioural requirements.

 

TREATMENT

 

Therapies such as Acceptance and Commitment Therapy (ACT) and Mindfulness-Based Cognitive Therapy (MBCT) are recommended. The usual techniques for reducing stress also apply for stress addiction as well, e.g., mindfulness, meditation, exercise, and social support.

 

 

(It is hereby made clear that this write up should not be treated as mental health treatment and in no way should be considered as a substitute for a Mental health Professional.)

 

Monday, May 11, 2015

 
 
 
 
 




मदर्स डे 

अचानक
सब बच्चे बहुत अच्छे हो जाते हैं, 
अचानक
सब की माँ  भगवान हो जाती है,
अचानक
बचपन की तस्वीरें अच्छी लगने लगती हैं,  
फिर  
एक और दिन आता है, 
और अचानक
सब अपने अपने काम में जुट जाते हैं, 
और माँ अकेली हो जाती है, 
फिर माँ इन्तिज़ार करती है  
पूरा एक साल।  
~ प्राणेश नागरी -
(Photo from free pictures on Google)

Wednesday, August 7, 2013

कैसा जीवन जी रहे हैं आप ?






तुम जिसे खो देते हो उसी को पा भी लेते हो! वह जो खो जाता है वह प्रकृति के हर कण में दिखने लगता है ! उस के न होने से उस का विस्तार बड जाता है घटता नहीं क्यूंकि आप हर पल हर दिशा में उस को देखने लगते हो ! सीमा शरीर तक की भी नहीं होती बस रूप बदलता है, रंग बदलता है काया बदलती है? काया के अवशेष वहीं रहते हैं ! बदल भी नहीं सकते क्यूंकि रचना नहीं बदलती, निर्माण की प्रक्रिया नहीं बदलती और अन्त का निश...
्चय नहीं बदलता ! देखो एक ही सूर्य , एक ही चंद्रमा और एक जैसे मौसम हमारे साथ - साथ अब भी चल रहे हैं ! जो मेंह आप को भिगोती है वोह हर किसी को भी भिगोती है , जो पुष्प आप को हंसाते हैं वोह हर किसी के साथ मुस्कुराते हैं! वास्तव में आप किसी को खो कर ही खुद को पा लेते हो! क्यूंकि आप जिसे हर कण में खोजने लगते हो वोह आप को अपने आप में भी दिखने लगता है, आप जान जाते हो कि आप भी वास्तव में प्रकृति का एक कण ही हो और आप में भी वोह वास करता है! मन की कोई मर्यादा नहीं होती क्यूंकि मन भटकता नही ! सोंच भटकती है और इसी भटकन में आप सत्य नहीं पहचान पाते! कभी चैन से जीने नहीं देता आप को, हर बार आप अपने आप को सुझाते हो कि ऐसे ही होना चाहिए था और जो हुआ वही होना चाहिए था! आप अपने आप से मिल तो पाते नहीं और फिर भी अपने आप को जूठा सत्य पिरोते रहते हो ! एक बार इंसान छला जाए तो कुछ भी नहीं मात्र एक अनुभव है , पर बार बार आप अपने ही आप को छलते रहें यह कैसा जीवन जी रहे हैं आप ?

Tuesday, January 8, 2013

हत्या अनिवार्य थी।

 
human adult footprint in the fine sand at the beach Stock Photo - 9302159
तपती हुई रेत के बीच
धंसते हुए पाऊँ के निशान
दूर बहुत दूर तक साथ चले
और ज़िन्दगी पिगलती रही
कतरा कतरा बरसती रही
पर भीग नहीं पाया कोई निशान,
मैं हारा , हारता गया
मैं चीखा था, कर्राहा भी था मैं,
पर धरती रंग खेल रही थी
और एक हत्या अनिवार्य थी।
मैंने कहा था मैं क्यूं
और तुम ने इतना भर कहा
मान बड़ा रहे हैं तुम्हारा
शहीद कोई भी हो सकता है।
फिर मेरी तस्वीर दीवार पर चडी
और तुम ने आते जाते पूछ लिया
कैसे हो तुम?
अब भला तुम ही बताओ
क्या तस्वीरें बातें करती हैं
या फिर क्या दीवारें बोलती हैं?
तुम अपनी भी हालत देखो
क्या दीवारों से बातें करते हैं?
~प्राणेश नागरी -08.01.2013.

Tuesday, December 18, 2012

शिवरात्री

 
सूर्य की लालिमा
बंद किवाड़ों के झरोखों से
छन छन बरस रही थी
तुम ने कहा था पूर्णता मिथ्या है
कुछ भी पूर्ण नहीं,
मैंने तुम्हारी और देख कर कहा था
आकाश की तरह विस्तृत हैं
तुम्हारी आँखें
मैं कब से अपने आप को ढूंढ रही हूँ,
संक्रामक है तुम्हारी पुतलियों की धमक
मेरा अंग अंग प्रज्वलन का साक्षी हो
तुम्हारे जीवात्मा के हवन कुण्ड में
समिधा की तरह अर्पित हो रहा है!
सुसम्य शौर्यवान संकेत का आभास लिए
मेरे अधरों पर हे अग्निदेव
कैसे टिके थे तुम्हारे नयन?
मैंने कहा था समर्पित हूँ
भस्म होना मर्यादा है मेरी
अलिंगंबध कर लो मुझे और
पूर्ण करो सृष्टि का निर्माण,
अब के बाद ना कहना
परिपूर्णता मिथ्या है!
तब तुम्हारे सतयुगी केश खुले थे
गंगा का जल प्रवाह
पूर्ण आहुति का मंगल मंत्र होम रहा था
शंख नाद से आकाश पाताल
नत मस्तक हो स्फुरित हो रह थे,
प्रकाश पुंज तक ले जा कर
मेरे दहकते अधरों पर
तुम्हारा नृत्य याद है मुझे
याद है मुझे ,तुम ने कहा था
यह पल शिवरात्री का स्वरुप है!
~प्राणेश नागरी 

Saturday, December 8, 2012

मुझे बोन्साई अच्छे नहीं लगते

मुझे बोन्साई अच्छे नहीं लगते
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
मैं तुम्हारी ख़ामोशी को गठरी बाँध
काँधे पर उठा लाया हूँ
मैं इस सफ़र को समय के सीने पर
सनद कर देना चाहता हूँ,
वोह देखो तुम्हारे और मेरे
बहस के अनगिनत मुद्दे
सब पीछे छूट गए हैं,
रह गई हैं कुछ घटनाएं
बौनी सी गमलों में उगी
बोन्साई जैसी ।
तुम्हारी आवाज़ दबी उँगलियों से बह कर
कोरे कागज़ पर फैल रही है
और आने वाला समय
इसे एक अनजान घटना नहीं
इतिहास का अछूता मोड़ मान लेगा
कहीं कोई हीर कोई रान्जा जन्म लेगा
और भूख से परास्त चीथड़ों से लिपटे
काया के अवशेष विलाप करते रहेंगे
देव कद समय से हारे
गमलों में पड़े बोन्साई जैसे।
मेरी सोंच के सभी दायरों में
तुम भी एक बोन्साई की तरह उगे हो
सच तो यह है कि
मैं शब्दों से हार गया हूँ
इसीलिए कहता हूँ मैं बदल नहीं सकता
यह बातें बस हम तक ही रह जाती हैं
और यह सामान्य घटना से आगे
कुछ भी नहीं हो पाती,
और आने वाला समय
इसे सनद नहीं कर पाता।
हाँ मुझे बोन्साई अच्छे नहीं लगते
क्यूंकि शब्द बौने नहीं होते
शब्द होते हैं देव कद।
 

Friday, November 30, 2012

 
 
 
 
 

                                 (Photograph courtsey Girls Guide To Survival)

मेरे साए जब टेढ़े मेढ़े हो जाते है
घबरा कर अंग अंग टटोलता हूँ मैं।
धूप की लकीर के उस पार
यादों की दीवार से टेक लगाये
तुम अक्सर मिलती हो मुझे
और कहती हो ,हाँ सोंच लिया मैंने
मौसमों से क्या डरना
चलो चलें सूखे पत्तों के बीच
खुद को एहसास दिलायें
कि अभी भी जी रहे हैं हम।
तुम्हारा पिघलता अस्तित्व देख
मैं मुस्कुरा देता हूँ
मेरी भुजाएं बांस की सही
आकाश से चाँद उतार तह लगा लेता हूँ
और फटे पुराने झोले में रख
तुम से कहता हूँ
मेरी भूख सदियों पुरानी है
और तुम्हारी मुस्कान नयी नवेली
अब जाते जाते ना मुस्कुराना
इस मिट्टी में किसी बीज के
अंकुरित होने की आशा नहीं मुझे
हाँ मैं जीतने से डरता हूँ
क्यूंकि अक्सर मैं जीत के हारता हूँ।
~प्राणेश नागरी- 27.11.2012