Wednesday, August 7, 2013

कैसा जीवन जी रहे हैं आप ?






तुम जिसे खो देते हो उसी को पा भी लेते हो! वह जो खो जाता है वह प्रकृति के हर कण में दिखने लगता है ! उस के न होने से उस का विस्तार बड जाता है घटता नहीं क्यूंकि आप हर पल हर दिशा में उस को देखने लगते हो ! सीमा शरीर तक की भी नहीं होती बस रूप बदलता है, रंग बदलता है काया बदलती है? काया के अवशेष वहीं रहते हैं ! बदल भी नहीं सकते क्यूंकि रचना नहीं बदलती, निर्माण की प्रक्रिया नहीं बदलती और अन्त का निश...
्चय नहीं बदलता ! देखो एक ही सूर्य , एक ही चंद्रमा और एक जैसे मौसम हमारे साथ - साथ अब भी चल रहे हैं ! जो मेंह आप को भिगोती है वोह हर किसी को भी भिगोती है , जो पुष्प आप को हंसाते हैं वोह हर किसी के साथ मुस्कुराते हैं! वास्तव में आप किसी को खो कर ही खुद को पा लेते हो! क्यूंकि आप जिसे हर कण में खोजने लगते हो वोह आप को अपने आप में भी दिखने लगता है, आप जान जाते हो कि आप भी वास्तव में प्रकृति का एक कण ही हो और आप में भी वोह वास करता है! मन की कोई मर्यादा नहीं होती क्यूंकि मन भटकता नही ! सोंच भटकती है और इसी भटकन में आप सत्य नहीं पहचान पाते! कभी चैन से जीने नहीं देता आप को, हर बार आप अपने आप को सुझाते हो कि ऐसे ही होना चाहिए था और जो हुआ वही होना चाहिए था! आप अपने आप से मिल तो पाते नहीं और फिर भी अपने आप को जूठा सत्य पिरोते रहते हो ! एक बार इंसान छला जाए तो कुछ भी नहीं मात्र एक अनुभव है , पर बार बार आप अपने ही आप को छलते रहें यह कैसा जीवन जी रहे हैं आप ?