Friday, July 29, 2011


मैं आज अपने सारे गी शहर की दीवारों पर लिखना चाहता हूँ ताकि किसी को भी तुम्हारीआंखूं का काजल चोरी ना करना पड़े! मैं अपने सितार के सुर भंवरूं कीघुन्जन के साथ बांदना चाहता हूँ ताकि किसी को भी चाँद से तुम्हारे घरका पता पूछना ना पड़े! मैं जानता हूँ ज़िन्दगी कभी डर नहीं सकती औरमौत कभी मर नहीं सकती!इसीलिए सूरज से लगातार पूछ रहा हूँ कि इसशहर के दरीचूं पर चाँद कब ठहरेगा?
तुम्हारी छन-छन करती पायल जब सतरंगी इन्द्रधनुष की कमान सेछूटती है तो मीलूँ लम्बी ख़ामोशी अचानक गुनगुना लेती है!सावन कीफुहार पुरवा के आँचल से लिपटी बूढ़े बाबा के आशीर्वाद का मौन स्पंदनमेरे माथे की झुरियूं मैं सजा देती है!परदेस मैं सोहर मेरे अंगनागुनगुनाती है और फाग और चैती अपने अनूठे रंग बिखेर देती है!
अब के जाने गंगा किनारे कोई कांवरिया शिव लिंघ कीअर्चना मैं कलशका नीर चढ़ाती होगी? जाने बाबा के सामने चन्दन से लिपटे किसी भांवरेके हाथ किसी मनचली की मांग मैं जीवन यात्रा का विश्वास भर रहे होंगे?जाने अब हम तुम कहीं मिल भी रहे होंगे?यह गाथा है और यह स्वप्नूं केशीश महल मैं जन्मी है और स्वप्नूं के शीश महल मैं अनगिनत चेहरेसामने आते हैं! कुछ अपने और कुछ अपने होकर भी पराये- पराये सेऔर इन मह्लूँ मैं जो रास्ता नहीं पहचान पाते भूल भुलैया मैं खो जाते हैं!
जाने क्यूं कहानियाँ सुनाते सुनाते गला रुंध जाता है , बेसबब आंसू की लड़ी लग जाती है ! हाथ आंखूं तक ले जाने कोमन करता है ! पर हाथ होते ही कहाँ हैं वह तो आस्तां पर दुआ मांगते मांगते छूट जाते हैं! भुला की जानां मैं कौन?

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