Wednesday, December 28, 2011

उस ने कहा


उस ने कहा
विष क्या उतरेगा
सागर मंथन किया है कभी
मैंने कहा हाँ दो बूँद आंसू पिया है अक्सर !
उस ने कहा
कहाँ डूंड लोगे
आकाश का विस्तार देखा है कभी
मैंने कहा हाँ
भिक्षु पात्र टटोला है अक्सर !
उस ने कहा
संतुष्टि कैसी
बलिदान किया है कभी
मैंने कहा हाँ
मन को मारा है अक्सर !
उस ने कहा
जीत कैसी
सूर्य से संवाद किया है कभी
मैंने कहा हाँ
भूख को सहलाया है अक्सर !
उस ने कहा
त्याग कैसा
व्रत दान किया है कभी
मैंने कहा हाँ
रोते को हंसाया है अक्सर !
उस ने कहा
तप्ति कैसी
प्रीत की रीत निबाई है कभी
मैंने कहा हाँ
अल्तमास को जलते देखा है अक्सर !
उस ने कहा
तपस्या कैसी
जप तप किया है कभी
मैंने कहा हाँ सांसूं की परिक्रमा की है अक्सर !
उस ने कहा
जीवन कैसा
सुख दुःख देखा है कभी
मैंने कहा हाँ
फूटपाथ पर घर बनते देखा है अक्सर !
~प्राणेश नागरी २८/१२ २०११

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