Thursday, August 9, 2012

धर्मक्षेत्र

 
 
हर बार
जन्म और मृत्यु के अंतराल में
शिशुपाल , दशानन और हिरन्यकश्यप
तुम्हारा उद्य देखा है मैंने,
नरसिम्हा अवतरण से ले कर
वासुदेव, तुम्हारे सुदर्शन चक्र
और धैर्य के प्रतिरूप का
साक्षी भी हूँ मैं!
अब के किस रूप में
प्रकट हुए हो तुम, हे दैत्य
और तुम्हारा वध करने हेतु
किस रूप में आना होगा मुझे!
अब मुझ में इतना सामर्थ्य नहीं
कि कुरुक्षेत्र में विराट स्वरुप ले
धनञ्जय तुम से संवाद करुं,
क्यूंकि अपने परिजनों का वध
तुम पहले ही कर चुके हो
अब तुम को परित्याग की
कौन सी कथा सुनाने आऊँ?
अब जहां तुम खड़े हो
उस धर्मक्षेत्र में आत्महत्या संभव है
पर महाभारत संभव नहीं !
~प्राणेश नागरी-१०.०८.२०१२

No comments:

Post a Comment