Tuesday, November 1, 2011


ज़िन्दगी किसी शामो - सुबह की मोहताज नहीं

तुम्हारे हसीन पाऊँ की दूल है वक़्त

झुक जाती हैं निगाहें झुक जाते हैं सर

हम बस एक ख्वाब देखते हैं

तुम्हारी आंखूं मे!

ख्वाब तुम्हारी आरज़ू का,

ख्वाब तुम्हारी सांस की खुशबू का

और वक़्त की देहलीज़ पर

अपूर्ण से पूर्ण हो जाते हैं

वक़्त तुम्हारे होंठूं की गर्मी में पिगलता है

हर सुबह और हर शाम

तुम्हारे नाम का सजदा करती है

एक परिंदे की पहली परवाज़ है ज़िन्दगी

जो मेरे होने से लेकर

तुम्हारे होने के एहसास तक

तुम्हे ढूंढते ढूंढते मुझे

खुदा तक पहुंचा देती है!

सच है तुम्हारे हसीन पाऊँ की दूल है वक़्त

2 comments:

  1. ...तुम्हे ढूंढते ढूंढते मुझे
    खुदा तक पहुंचा देती है!

    ya

    खुद तक पहुंचा देती है?

    yeh fasla khudi aur khuda ke beech ka ahsaas e waqt bada deta hai aur ek parinde ki parvaaz simat jaati hai...

    Just a fleeting thought.
    Peace,
    Desi Girl

    ReplyDelete