
पच्चीस जनवरी
कल मैं जा रहा हूँ झंडा फहराने
मैं कल राष्ट्र गान भी गाऊंगा
भाषण भी दूंगा
फूलों की माला भी पहनूंगा
बापू, नेता जी, सब का
गुण गान करूंगा
मिठाई और जल पान करूंगा !
फिर रस्ते में जो भूखा नंगा मिले
उसे कोसता जाऊंगा
घर पहुँचते पहुँचते
अपने आप से कहूँगा
इस देश का कुछ नहीं हो सकता
सब कुछ बदलना पड़ेगा!
घर की चौखट पर
मेरे अपने मुझ से कहेंगे
इस साल कुछ नया कर लेते
कुछ नहीं तो कम से कम
अपने आप को बदल देते !
हर साल की तरह
मैं कमरे के अँधेरे मैं डूब जाऊंगा
घुट्नूं मैं चेहरा छुपा कर
साल गुजरने की प्रतीक्षा करूंगा
और फिर अगले साल
झंडा फ़हराने जाऊंगा !
~प्राणेश नागरी २४.०१.२०१२




