Saturday, April 14, 2012

बेतुका

असंगति में
संगत दर्शाता
बेतुका सा
विवेकहीन चेहरा लिए
क्या जानूं
क्यूं खाली खाली सा हूँ,
मेरे ही हाथ
नहीं उठे होंगे
तुम्हें तो दुआ की
आदत ही नहीं!
सजदा सलाम
सब रह गया मुझ से
इन्तिज़ार ने
कुफ्र सिखा दिया
बुत परस्त हो गया,
ज़मीन पर झुका नहीं
दिल धड़का कि नहीं
कुछ भी याद नहीं !
इलज़ाम नहीं देता तुम्हे
पर क्या करुं ज़माने का
सब जानते हैं
तुम्हारी मेरी दास्ताँ!
इसीलिए बेतुकी सांसें
बेतुकी सरगोशियाँ
और बेतुका एहसास
सौंपने निकला था तुम को
जिसे आज भी
लिए फिरता हूँ दरबदर!
~प्राणेश नागरी -१३.०४.२०१२

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