Monday, May 11, 2015

 
 
 
 
 




मदर्स डे 

अचानक
सब बच्चे बहुत अच्छे हो जाते हैं, 
अचानक
सब की माँ  भगवान हो जाती है,
अचानक
बचपन की तस्वीरें अच्छी लगने लगती हैं,  
फिर  
एक और दिन आता है, 
और अचानक
सब अपने अपने काम में जुट जाते हैं, 
और माँ अकेली हो जाती है, 
फिर माँ इन्तिज़ार करती है  
पूरा एक साल।  
~ प्राणेश नागरी -
(Photo from free pictures on Google)

2 comments:

  1. कविता बहुत सामयिक है
    पर रिश्ते एक दिन में यहाँ तक नहीं पहुँचते
    हम से ही कहीं ग़लती हो गयी ऐसी पीढ़ी बड़ी करने में
    रही सही कसर पूंजीवादी दिवसों ने पूरी कर दी.
    Peace,
    Desi Girl

    ReplyDelete
  2. Every Mother's Day I read this poem it feels more relevant than ever. Wish relationships were like those in the scriptures, movies and glossy magazines devoid of all human frailties then moms could be like siri completing our sentences and emotional voids alike.
    Desi Girl

    ReplyDelete