
तुम ने वादा किया था
तुम ने वादा किया था
परिवर्तन उत्क्रांती का आधार होगा
फिर काल चक्र क्या चाल चला
मैं तुम्हारी ज़रुरत कैसे बना
कैसे रिसती हुई रात तुमने
सौंप दी रेंगते जुगनुओं के रेले को
उफ़ यह दुएँ की लडखडाती लकीर
स्वप्न की पगडंडी कैसे हुई
सब कुछ जमा हुआ सा क्यूं है
क्यूं सांसें अन्धकार मैं झूल रही हैं
क्या सुन नहीं पाते तुम
मसली हुई कोंपलों का चीत्कार
काया के अतृप्त क्षण ,उतावले परिद्रश्य
क्यूं शून्य मैं बटक रहे लावारिस
किसे अब बलि चढ़ाना होगा
त्याग का अर्थ समझाने के लिए
किस संहार की कल्पना मैं हो साधक
अनर्थ का अर्थ करते रहोगे कब तक
~ प्राणेश नागरी १४.०२.२०१२
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