Thursday, March 1, 2012

विस्थापन


विस्थापन

चूंकि मृत्यु के लिए

जीवन अनिवार्य है

तुम्हारी मौत का समाचार

मुझे दुःख नहीं देता

हर्षित होता हूँ मैं

यह जान कर, कि

इतने वर्ष तुम भी

जीवित रहे मेरी तरह!

जीवित रहे, या फिर

तुम्हारी काया भी

अंतिम संस्कार की

प्रतीक्षा में शून्य में

विकल्प ढूँढती रही,

विकल्प बस एक ही

कि मृत्यु के लिए कैसे

जीवन सुरक्षित करें!

तुम सोंचते रहे कि

कश्यप ऋषि आयेंगे

और कोई नया

महामंत्र जाप लेंगे

शायद इस रक्त रंजित

धरती पर फिर एक बार

सतीसर उमढ आये

फिर कोई दानव जन्म ले

और मुक्त करे हमारी चेतना को

क्यूंकि सत्ता मैं अवतरित देवता

इसे कब का भूल चुके हैं !

तुम्हारी मृत्यु एक मेला है

जहां सब देह्वासी

इकट्ठे हो जायेंगे

वह जो मेरे अपने हैं

और जिन्हें मैं कब का

मृत समझ चुका हूँ

पर जो वास्तव में

अपने अंतिम संस्कार की

प्रतीक्षा में, जीने के

विकल्प ढूँढ रहे हैं

बस एक दिन मुझे

हर्षित करने के लिए!

~प्राणेश नागरी-२९.०२.१२

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