Friday, March 2, 2012

कुछ ज़ेन कवितायें


कुछ ज़ेन कवितायें

अब थक गया हूँ बहुत

अब घर जाना चाहता हूँ

कोई मेरा पता बता दे मुझे !


परत दर परत बादल हट गए

हम चमकते चाँद को

चमचमाती रोटी समझे!



किसी की सांसें छू गयी

मैं इंसान से

फ़रिश्ता हो गया !



आवाजों का जंगल

क्या किया यह तुम ने

मीलों पड़ी खामोशी !



जी लूँगा हर इक मौसम

ओढ़ लूँगा हर सावन

तुम मत बदलना कभी !



मेरी देह के दरीचों पर

पांच पीरों ने दस्तक दी

मेरा वजूद दरगाह हो गया !

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