तुम्हारे बिन
लम्बे मीलों लम्बे दिन ,
और तुम्हारे साथ
पलक झपकते दिन !
इतने सारे दिन
और उस के बाद
बस एक दिन
और एक दिन के भी
कुछ पल छिन!
तुम्हारे बिन
मीलों लम्बे दिन!
तुम्हारे बिन
यादों मैं उलझे दिन
घरम कोफी की
चुस्कियों वाले दिन
बेवजह सिसकियों वाले दिन
कुछ और कहने वाले , और
कुछ और सोंचने वाले दिन
वह सब साथ के दिन
जाने क्यूं हो जाते हैं
मीलों लम्बे दिन
तुम्हारे बिन !
मुस्कुराती दुपेहली दोपहरी में
हमारे साथ साथ चलते दिन
कनखियूं से तुम्हारे होंठों को
छूते सरगोशियाँ करते दिन
उडती सब्ज़ हवाओं में
दुपट्टे से खेलते दिन
कभी अजीब से
कभी अजनबी से
कभी अपने से
जाने पहचाने दिन
तुम्हारे बिन
मीलों लम्बे यह दिन !
~प्राणेश नागरी -१०.०३.२०१२
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